अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस: 23 सितंबर को हर साल विश्व भर में यह दिन मनाया जाता है। इस दिन लोगों को सांकेतिक भाषाओं के बारे में जागरूक करना है,जो लोग बात नहीं कर सकते उन लोगों के लिए सांकेतिक भाषा एक वरदान हैं इस से जो लोग बोल नहीं सकते वो लोग इस भाषा का इस्तेमाल करके अपने विचारों को प्रकट कर सकें, इस दिवस की जानकारी भी उन परीक्षाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
सांकेतिक भाषाएँ अन्य भाषाओ की तरह एक विकसित भाषा हैं, इस भाषा की अपनी शब्दावली और व्याकरण है, सांकेतिक भाषाओं में हाथ के संकेत शामिल होते हैं और हाथ से आकृतियाँ बनाना और अन्य शारिरिक संकेत देना जो अर्थ व्यक्त करते हैं, चेहरे के भावों का उपयोग करना सांकेतिक भाषा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जैसे कि एक व्यक्ति अपनी भौहें उठाता है इसका मतलब है कि उसके पास कोई सवाल है, ऐसे बहुत सारे संकेत जिन से अपने सवालों को बता सकें |
अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 19 दिसंबर 2017 के दिन घोषित किया गया था। यह बधिर लोगों के अधिकारों और सांकेतिक भाषाओं के महत्व को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाने लगा। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने विश्व बधिर संघ के एक प्रस्ताव के जवाब में 23 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस के रूप में घोषित किया। वहीं 23 सितंबर 1951 को WFD (विश्व बधिर संघ) की स्थापना की गई थी इसलिए यह दिन चुना गया था। इसके बाद पहला अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस 23 सितंबर, 2018 के दिन मनाया गया था, इस दिन को मना कर लोगों को जानकारी देना जिस से सब को इसका लाभ मिल सके |
अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस पर Wings के अनुसार बधिर लोगों और उनके समुदायों को हमारे समाज में शामिल करना है। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ द डेफ के रिकॉर्ड के बताये अनुसार दुनिया में लगभग 70 मिलियन से अधिक लोग बहरे हैं। इन 70 मिलियन में से 80% से अधिक विकासशील देशों के हैं। वर्तमान में, दुनिया भर में बधिर लोग और समुदाय 300 से अधिक सांकेतिक भाषाओं का उपयोग करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस सांकेतिक भाषाएँ पूर्ण रूप से विकसित भाषाएँ हैं। उनकी अपनी शब्दावली और व्याकरण है। बधिर लोग एक दूसरे से संवाद करने के लिए सांकेतिक भाषा का उपयोग करते हैं। सांकेतिक भाषाओं में अक्सर हाथ के संकेत शामिल होते हैं। इनमें हाथ से आकृतियाँ बनाना और अन्य शारिरिक संकेत देना जो अर्थ व्यक्त करते हैं। चेहरे के भावों का उपयोग करना सांकेतिक भाषा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जैसे कि एक व्यक्ति अपनी भौहें (आईब्रो) उठाता है इसका मतलब है कि उसके पास कोई सवाल है।